#FridayFotoFiction
(Dec 02, 2017)
1 दिसंबर की वो रात सामान्य रात की तरह थी मगर उस रात नींद मेरी आँखों से कोसो दूर थी. सोने की हर कोशिश करके भी जब नींद ने मेरी आँखों में दस्तक नहीं दी तो मैंने कमरे की लाइट जलाई और कुछ पुराने खत निकाल कर पढ़ने बैठ गया.
पिछले दो सालों से मैं और प्रिया अलग अलग शहरों में रह रहे थे. 3 सालों तक साथ रहने के बाद अलग रहने का फैसला भी प्रिया का ही था और आज पूरे दो साल बाद प्रिया मुझसे मिलने आ रही थी. मैं उसे रिसीव करने ठीक 5 बजे स्टेशन पर पहुंच गया. रेलवे स्टेशन में लगी बड़ी सी गोल घडी ने जैसे ही 5:10 का समय दिखाया ट्रेन के आने का अनाउंसमेंट हो चुका था.
मैं भाग कर प्लेटफार्म पहुंच गया. हर उतरने वाले सवारी के चेहरे को मैं ध्यान से देखता और उसमे प्रिया को ना पाकर फिर अगले सवारी में प्रिया को खोजने लगता. एक एक करके लगभग सारे सवारी बहार आ चुके थे.
प्रिया कहा थी? क्या उसे मुझसे मिलने की जल्दी नहीं थी? कही वो अंदर सामान के साथ मेरा इंतज़ार तो नहीं कर रही थी?
मैं डिब्बे के अंदर पंहुचा पर अंदर भी प्रिया कही नहीं थी. B1 ही तो उसने अपना डिब्बा बताया था. मैंने तुरंत प्रिया का नंबर डायल किया, हो सकता है उसे बताने में कोई गलती हो गई हो पर प्रिया का नंबर बंद था. कुछ देर बाद ट्रेन जा चुकी थी और प्रिया कही नहीं थी. मैंने कई बार उसका नंबर लगाया पर वो अब तक बंद था. कई घंटे इंतज़ार करने के बाद मैं वापस घर आ गया. अब तक प्रिया का नंबर बंद था.
उस रात को कई साल बीत चुके हैं. मैं आज भी कई बार स्टेशन पर जाकर घंटो तक उस बड़ी सी घडी को निहारते बैठा रहता हूँ, क्या पता किस दिन मेरा इंतज़ार पूरा हो जाए.
-By Gaurav Yadav