सुनो कल जब बारिशें आए, तुम छत पर चली आना,
सर को भले ही ढक लेना, मगर चेहरा ना छुपाना,
दूर अपनी खिड़की से मैं तुम्हारी आँखें पढता हूँ,
जो नज़रें मुझसे टकराए तुम पलकें ना झुकाना.
सुनो कल जब बारिशें आए तुम छत पर चली आना.
कुछ देर फिर यूं ही खड़े रहना, कभी बाजुओं को फैलाना,
मैं तुम्हारी बाहों में हूँ, मुझे इशारों में बतलाना,
ढल जाती हैं शामें अक्सर फिजाओं में जिनके खुलने से,
अपनी काली जुल्फों को तुम हवाओं में लहराना.
सुनो कल जब बारिशें आए, तुम छत पर चली आना.
कई साल गुज़ारें हैं मैंने इस इंतज़ार के,
इन बारिशों में मुझ संग तुम यूं भीग जाना,
गर्मी तुम्हारी साँसों की मेरे जिस्म में बस जाएगी,
बस जाते जाते हथेलियां अपनी मेरे माथे पे रख जाना.
सुनो कल जब बारिशें आए, तुम छत पर चली आना.
-Gaurav Yadav
No comments:
Post a Comment