ज़िन्दगी
हसती भी है, मुस्कुराती भी है,
नए
सपनो में अक्सर ये खोती जाती भी है,
पर
जब कभी मैं खुश होकर मेरी आँखों में देखता हूँ,
मेरी
निगाहों में मुझे तेरी कमी नजर आती है.
हर
रोज मैं खुद को संवार लेता हूँ,
एक
अक्स है मेरा जो मैं खुद से उधार लेता हूँ,
पर
जब मेरी हकीकत मुझसे टकराती है,
मेरी
शख्सियत में मुझे तेरी कमी नजर आती है.
अचानक
अकेलापन मुझे घेर लेता है,
फिर
लोगों की भीड़ मुझे डरlती है,
जाने
क्या चाहता है मेरा दिल मैं खुद नहीं जIनता,
पर
धड़कनो में मुझे तेरी कमी नजर आती है.
नए
रिश्तों के लिए वक़्त अब मैं निकल लेता हूँ,
तेरे
वादों से यादों की पगार लेता हूँ,
पर
जब कभी दुआओं में उठते हैं हाँथ मेरे,
मेरी
इबादत में मुझे तेरी कमी नजर आती है.
~गौरव
यादव
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