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Thursday, August 25, 2016

मुसाफिर (Musafir)



अब तक तो इन जख्मो को भर जाना था
जो वादे किये थे मैंने उनसे मुकर जाना था
एक रास्ता हैं जो जाता है तेरे घर की तरफ
उन रास्तो का मेरे दिल से उतर जाना था

भटका हुआ मुसाफिर जो दर बदर फिरता है
अब तक तो उसकी मंजिल को मिल जाना था
हांथो की लकीरो पे भरोसा करके बैठा रहा वो
अब तक तो उन लकीरो को उभर जाना था

हर रिश्ता उसने दूसरो से तोड़ रख्खा था
पुरानी यादों से खुद को जोड़ रख्खा था
हर शक्श सोचता रहा अब तलक कैसे ज़िंदा है
कि इस दौर में आते तक तो उसे बिखर जाना था

                                                                                                   गौरव यादव





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