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Friday, August 19, 2016

एक कहानी फिर उभर आई



मुद्दतों बाद आज हमने देखा उसे
मुद्दतों बाद आँखे आज फिर पथराई
जाने कितने बरस एक पल में जी उठे
मुद्दतों बाद हमारे हिस्से में एक नई सुबह आई


चेहरे की उदासी जैसे जाने लगी
बालों की सफेदी भी मुरझाने लगी
जिस्म की झुर्रियां वजूद खोने को हैं
मुद्दतों से मांगी दुआ जैसे कोई रंग लाई


सदियों की तपन जो आँखों के किनारों में कैद थी
बेबस बहते आंसुओं से उनमे कुछ नमी आई
ख्याल कई रात के मिल गए फिर जैसे हक़ीक़त से
और मुद्दतों से छुपकर बैठी एक कहानी फिर उभर आई

                                             -Gaurav Yadav



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