मुद्दतों बाद
आज हमने
देखा उसे
मुद्दतों बाद
आँखे आज
फिर पथराई
जाने कितने
बरस एक
पल में
जी उठे
मुद्दतों बाद
हमारे हिस्से
में एक
नई सुबह
आई
चेहरे की
उदासी जैसे जाने
लगी
बालों की
सफेदी भी
मुरझाने लगी
जिस्म की
झुर्रियां वजूद
खोने को
हैं
मुद्दतों से
मांगी दुआ
जैसे कोई
रंग लाई
सदियों की
तपन जो
आँखों के
किनारों में
कैद थी
बेबस बहते
आंसुओं से
उनमे कुछ
नमी आई
ख्याल कई
रात के
मिल गए
फिर जैसे हक़ीक़त
से
और मुद्दतों से
छुपकर बैठी
एक कहानी
फिर उभर
आई
-Gaurav Yadav