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Friday, August 19, 2016

एक कहानी फिर उभर आई



मुद्दतों बाद आज हमने देखा उसे
मुद्दतों बाद आँखे आज फिर पथराई
जाने कितने बरस एक पल में जी उठे
मुद्दतों बाद हमारे हिस्से में एक नई सुबह आई


चेहरे की उदासी जैसे जाने लगी
बालों की सफेदी भी मुरझाने लगी
जिस्म की झुर्रियां वजूद खोने को हैं
मुद्दतों से मांगी दुआ जैसे कोई रंग लाई


सदियों की तपन जो आँखों के किनारों में कैद थी
बेबस बहते आंसुओं से उनमे कुछ नमी आई
ख्याल कई रात के मिल गए फिर जैसे हक़ीक़त से
और मुद्दतों से छुपकर बैठी एक कहानी फिर उभर आई

                                             -Gaurav Yadav



Thursday, August 11, 2016

Yaadein



जब यादों का वो भारीपन हमको अपनाने लगता है,
अब वो मेरे साथ नही एहसास दिलाने लगता है,
जब तकते तकते आँखों में अँधेरा छाने लगता है,
तब उन  कुछ सच्ची यादों का मिट जाना बेहतर लगता है.


जब रातों का रक्खा तकिया कुछ गीला गीला लगता है ,
अब हस्ते हस्ते आँखों में आंसू जाने लगता है,
जब खालीपन और सूनापन हममे बस जाने लगता है,
तब कुछ अनजाने रिश्तो का मिट जाना बेहतर लगता है.


जब एक लड़की की यादों में सब लिपटा लिपटा लगता है,
अब सूनी सूनी राहों में कोई साया साथ दिखता है,
जब जीने का मकसद हमको खाली सा लगने लगता है ,
तब कुछ अनजाने रिश्तो का मिट जाना बेहतर लगता है.

Gaurav Yadav 

Monday, July 11, 2016

ख़ामोशी


जाने कैसी अजीब सी ख़ामोशी है ये
मेरा वजूद ही मुझे सुन नहीं पाता है
अपने आप से ही बातें करता रहता हूँ मैं
हर शख्स मुझे मेरा कातिल नजर आता है


भागता रहता हूँ मैं खुद ही खींची दहलीजों से
मेरा अपना साया भी अब मुझे डराता है
नींद में टूटे ख्वाब, दिन में भी रुलाते हैं
जिनका पूरा होना और कही नजर आता है


सब खोकर भी कुछ खो सके थे,
पर अब सब पाकर भी सब खाली नजर आता है
कमी किसकी है मैं कह नहीं सकता
बस एक धुंधला पर्दा ख्वाहिशों के ऊपर नजर आता है


जाने वाला जा भी चुका, ये जनता हूँ मैं
और वो कभी अब वापस आने वाला है
पर शायद कुछ बातें हैं जो अब तक मुझमे जिन्दा हैं
वरना यहाँ तो एक उजड़ा हुआ शहर है, जो बस साँसे लेता नज़र आता है
                                                   
                                                    -Gaurav Yadav