जब यादों का वो भारीपन हमको अपनाने लगता है,
अब वो मेरे साथ नही एहसास दिलाने लगता है,
जब तकते तकते आँखों में अँधेरा छाने लगता है,
तब उन कुछ सच्ची यादों का मिट जाना बेहतर लगता है.
जब रातों का रक्खा तकिया कुछ गीला गीला लगता है ,
अब हस्ते हस्ते आँखों में आंसू आ जाने लगता है,
जब खालीपन और सूनापन हममे बस जाने लगता है,
तब कुछ अनजाने रिश्तो का मिट जाना बेहतर लगता है.
जब एक लड़की की यादों में सब लिपटा लिपटा लगता है,
अब सूनी सूनी राहों में कोई साया साथ न दिखता है,
जब जीने का मकसद हमको खाली सा लगने लगता है ,
तब कुछ अनजाने रिश्तो का मिट जाना बेहतर लगता है.
Gaurav Yadav
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