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Tuesday, February 19, 2019
Thursday, August 11, 2016
Yaadein
जब यादों का वो भारीपन हमको अपनाने लगता है,
अब वो मेरे साथ नही एहसास दिलाने लगता है,
जब तकते तकते आँखों में अँधेरा छाने लगता है,
तब उन कुछ सच्ची यादों का मिट जाना बेहतर लगता है.
जब रातों का रक्खा तकिया कुछ गीला गीला लगता है ,
अब हस्ते हस्ते आँखों में आंसू आ जाने लगता है,
जब खालीपन और सूनापन हममे बस जाने लगता है,
तब कुछ अनजाने रिश्तो का मिट जाना बेहतर लगता है.
जब एक लड़की की यादों में सब लिपटा लिपटा लगता है,
अब सूनी सूनी राहों में कोई साया साथ न दिखता है,
जब जीने का मकसद हमको खाली सा लगने लगता है ,
तब कुछ अनजाने रिश्तो का मिट जाना बेहतर लगता है.
Gaurav Yadav
Monday, July 11, 2016
ख़ामोशी
मेरा वजूद ही मुझे सुन नहीं पाता है
अपने आप से ही बातें करता रहता हूँ मैं
हर शख्स मुझे मेरा कातिल नजर आता है
भागता रहता हूँ मैं खुद ही खींची दहलीजों से
मेरा अपना साया भी अब मुझे डराता है
नींद में टूटे ख्वाब, दिन में भी रुलाते हैं
जिनका पूरा होना और न कही नजर आता है
सब खोकर भी कुछ खो न सके थे,
पर अब सब पाकर भी सब खाली नजर आता है
कमी किसकी है मैं कह नहीं सकता
बस एक धुंधला पर्दा ख्वाहिशों के ऊपर नजर आता है
जाने वाला जा भी चुका, ये जनता हूँ मैं
और वो न कभी अब वापस आने वाला है
पर शायद कुछ बातें हैं जो अब तक मुझमे जिन्दा हैं
वरना यहाँ तो एक उजड़ा हुआ शहर है, जो बस साँसे लेता नज़र आता है
-Gaurav Yadav
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