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Saturday, September 10, 2016

मैं दर्द लिखता हूँ



बेशक मैं मेरे शब्दों से मेरा दर्द लिखता हूँ
जो हासिल न हुआ अब तलक वो हमदर्द लिखता हूँ
एक अधूरी कहानी जो बिखरी है लफ़्ज़ों के दरमियां
उन अधूरी कहानियों का मैं थोड़ा सा जर्द लिखता हूँ.


बिस्तर के सिरहाने पे कई ख्वाब रखे हैं
हर रात जो बिखर जाते हैं मेरी यादों की तरह
और चादर की सिलवटों में जो सिसकियाँ कैद हैं
मैं उन सिसकियों में पले मेरे सब दर्द लिखता हूँ.


काले अंधेरो में कई चेहरे अब ताना बुनते हैं
जो फिर बिखर जाते हैं जुगनू की रौशनी की तरह
एक सर्द रात में थामा था उसने जो हाँथ मेरा
अक्सर मैं उन सर्द रातों के मेरे सब दर्द लिखता हूँ.


                                                                              - Gaurav Kumar


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